Who is the nearest enemy of Human Beings Full guide in Hindi

हमारा सबसे निकटवर्ती शत्रु”क्रोध” कैसे है आपलोग? उम्मीद करती हूँ की,पहले से बेहतर होंगे, और आगे इससे भी बेहतर रहेंगे. दोस्तों, आज हम बात करेंगे एक ऐसे विषय पर, जो हमारी इस भाग-दौर भरी जिंदगी का हिस्सा बन चूका है.

जिसका नाम क्रोध” है. क्रोध एक ऐसा शब्द है, जिसे बोलने मात्र से ही हमारे अंदर एक अजीब सा एहसास होने लगता है. अजीब सा कम्पन होने लगता है.

हमारे जीवन के 60 वर्षो में से आधी जिंदगी तो हम क्रोध के साथ ही बिता देते हैं. जब हमें होश आता है, तब तक समय हमारे हाथ से सब कुछ निकल चूका होता है.

उस वक्त हम अपने आप पर क्रोध करते हुए पूरी जिंदगी बिता देते है. यहाँ तक कुछ लोग तो जीवन के अंतिम क्षण तक दुसरो को ही दोषी मानते है.

दुसरो पर ही क्रोध करते हैं. “जिससे हांसिल कुछ नहीं होता, बल्कि हम अपने आप को ही नष्ट करते रहते है.” लेकिन क्रोध कभी अनायास नहीं आता.

क्रोध आने का कुछ न कुछ कारन जरूर होता है. यदि हम उस कारण को ही ख़त्म कर दें, उस कारन को शांति से समझे और उससे निपटे तो क्रोध- उत्तेजना आदि आने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं.

आज हम जिस विषय पर बात करने वाले है, उसे पढ़ने के बाद मुझे उम्मीद है, की आगे से आप अपने क्रोध पर नियंत्रण पा सकेंगें. ” जिसने क्रोध को जित लिया, उसने अपने मन को जित लिया.”

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your nearest enemy
Nearest Enemy

मन जितने  के बाद मनुष्य विजेता बन जाता है. जो विजेता है, वही सफल है. जो सफल है, उसी का जीवन सहज,सरल और सुन्दर है. तो चलिए शुरू करते है.

  1. क्रोध क्या है?
  2. क्रोध कब और कैसे?
  3. क्रोध सबसे निकटवर्ती शत्रु।
  4. क्रोध के बारे में महान लोगो की राय।
  5. क्रोध से होने वाले मानसिक प्रभाव।
  6. क्रोध से होने वाले शारीरिक प्रभाव।
  7. क्रोध के भयंकर परिणाम और ऋषि प्रचेता की कहानी।
  8. क्रोध से बचने के उपाय और उसका निराकरण|

Table of Contents

क्रोध क्या है?

प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में कई व्यक्तियों ,परिस्थितियों का नित्य रोज सामना करना पड़ता है. इनमे से कुछ व्यक्तियों  का व्यवहार या कुछ परिस्थितिया हमारे मन को अनुकूल और कुछ प्रतिकूल प्रतीत होती है.

प्रतिकूल व्यव्हार या परिस्थितया पाकर उद्विग्नता उत्त्पन होती है, फिर उद्विग्नता इतनी उत्तेजना उत्त्पन करता है, की व्यक्ति अपने पुरे आवेग से उन परिस्थितियों को नष्ट कर देने के लिए चढ़ दौरता है.

यह आवेग कई बार इतनी तेज होता है, की व्यक्ति अपनी समझ-बुझ और विवेक को भी ताक पर रखकर अपनी शक्तियों को नष्ट-भ्रष्ट करने लगता है. इसी प्रकार की आवेगपूर्ण स्थिति को ही क्रोध कहा जाता है.

क्रोध इंसान की प्रवृति होती है. जो किसी में कम होती है,तो किसी में अधिक. इसके पीछे हर व्यक्ति का स्वाभाव होता है, जिसके चलते या तो वो क्रोध को अपने नियंत्रण में कर लेता है, या फिर स्वयं ही क्रोध से नियंत्रित होने लगता है.

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क्रोध कब और कैसे?

क्रोध, गुस्सा, आवेश, खिन्नता उद्विग्नता ये सब एक ही शब्द है. इसकी उत्त्पति तब होती है, जब हम पूरी तरह से अपने मन के नियंत्रण में आ जाते है.

मन के नियंत्रण में आते ही हमारे बुद्धि विवेक का पतन हो जाता है, और हम अपना आपा खो बैठते है. उस स्थिति में हम जो भी कार्य करते है, वो हमारे क्रोध का ही परिणाम होता है.

आजकल के इस भाग-दौर भरी जिंदगी में हम सभी कुछ न कुछ करते रहते है. हम व्यस्त रहते है, लेकिन अक्सर ये  देखा जाता है की, अधिकाँश लोग अस्त-व्यस्त रहते है.

इस अस्त-व्यस्त भरी जिंदगी में हम जो भी काम करते है, ना तो हमारा काम सफल होता है, न ही हमारी कोई योजना सफल होती है. क्रोध के हालात में किया गया काम का परिणाम भी गलत ही होता है.

तब हम तनाव में आ जाते है। तनाव में आने के साथ ही खिन्नता की उत्त्पति होती है, खिन्नता ‘क्रोध’ का ही दूसरा नाम है.

कभी-कभी तो क्रोध की सीमा इतनी चरम होती है, की उससे हमारा मानसिक और शारीरिक स्वस्थ्य के साथ-साथ रिश्ता, समाज आदि पर भी प्रभाव पड़ता है.

जब हमारा मन शांत होता है, तब हम अपने आप का आत्ममूल्यांकन करते है, तो हमें पता चलता है-” दुसरो को तो हमने सिर्फ तकलीफ दी, अनिष्ट तो खुद का किया.”

वैज्ञानिक तथ्य के अनुसार क्रोध की तुलना हाई ब्लड प्रेशर से तथा खिन्नता की तुलना लो ब्लड प्रेशर से की जाती है. कहा जाता है, की ” 1घंटे का क्रोध 24 घंटे के 104 डीग्री तेज बुखार से भी अधिक जीवन शक्ति का विनाश करती है.

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क्रोध सबसे निकटवर्ती शत्रु

क्रोध तो वैसे हर इंसान में होता है, किसी में अधिक तो किसी में कम. कभी-कभी क्रोध आने के कारण होते है, तो कभी क्रोध अनायास ही आ जाता है.

आजकल के इस वक्त में क्रोध अक्सर युवाओ में देखा जाता है. युवा अवस्था में क्रोध करना, मतलब अपनी करियर अपने सपने और अपनी जिंदगी को बर्बाद करना है.

क्योकि क्रोध के समय व्यक्ति यह भूल जाता है, की क्या उचित, क्या अनुचित? इस स्थिति में क्रुद्ध व्यक्ति अपनी शारीरिक, मानसिक शक्तियों को बुरी तरह से नष्ट कर डालता है.

जब किसी व्यक्ति को क्रोध आता है, जिस पर क्रोध आता है, उस वक्त वह क्रोध की भावना सामने वाले व्यक्ति में भी संचारित होता है. ऐसे दशा में लड़ाई से लेकर आत्मघात जैसे स्थिति बन जाती है.

क्रोध का आवेश जिस पर चढ़ रहा हो, उसकी गतिविधियों पर ध्यानपूर्वक दृष्टि डाली जाए, तो पता चलेगा की पागलपन में अब बहुत थोड़ी ही कमी रह गई है.

अधिक क्रोध आने पर मस्तिष्कीय द्रव एक प्रकार से उबलने लगता है, यदि उसे ठंडा न किया जाए, तो मानसिक रोगो को लेकर हत्या-आत्महत्या जैसे क्रूर कर्म कर बैठने जैसे स्थिति उत्त्पन हो जाती है.

क्रोध का आवेश शरीर पर क्या असर डालता है, और बुद्धि को कैसे भ्रष्ट कर देता है? इसके उदाहरण हम सब आये दिन अपने आस-पास देखते रहते है.

गुस्से से तमतमाया चेहरा राक्षसों जैसा बन जाता है। आँखे, होठ-नाक आदि पर आवेशों के उभर प्रत्यक्ष दीखते है. मुँह से अभिष्ट शब्दों का उच्चारण चल पड़ता है.

रक्त-प्रवाह की तेजी से शरीर डोलने लगता है. हाथ-पैर कांपते और रोएं खड़े हो जाते है “इस स्थिति में ऐसे व्यक्ति स्वयं के लिए ही एक समस्या बन जाता है.”

ऐसे दशा होने पर हितैषी लोग सबसे पहला काम यह करते है, की आवेशग्रस्त व्यक्ति को शांत करते हैं. जिस कारन उत्तेजना आई थी, उसका निवारण करने पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता, जितना की आवेग ठंडा करने पर.

किसी भी प्रतिकूलता में उतनी हानि नहीं होती, जितनी की आवेशग्रस्तता से…

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क्रोध के बारे में महान लोगो की राय

क्रोध के सम्बन्ध में अब तक किये गए अध्ययनों के अनुसार “एक स्वस्थ,शांत व्यक्ति की तुलना में कमजोर,दुर्बल तथा तनावग्रस्त व्यक्ति ज्यादा क्रोधित होता है.

एक कहावत भी प्रसिद्ध है– ” कुब्बत कम गुस्सा बहुत”

वैसे क्रोध के बारे में बहुत से दार्शनिक और नीतिकारों की अलग-अलग राय है. नीतिशास्त्रों के अनुसार ” क्रोध करने की आवश्यकता भी है.” किन्तु नीतिकारों ने जिस क्रोध को आवश्यक बताया है, वह विवेकपूर्ण होना चाहिए.

यदि क्रोध को पूरा त्याग दिया जाए, तो अनीति, अन्याय का विरोध, दुष्ट तत्वों का दमन और असुरता का प्रतिकार तो फिर असंभव हो जायेगा.

महान लोगो ने अनीति, अन्याय, दुष्ट और असुरता का प्रतिरोध करने के लिए सात्विक क्रोध करने का उपदेश दिया है, लेकिन मनोविकार के रूप में जिस क्रोध की चर्चा हम यहाँ कर रहे है, वह निश्चित ही अमंगलकारी, अनिष्टकारी और हानिप्रद है.

  1. कवी वाणभट्ट ने इस मनोविकार के सम्बन्ध में कहा है- “अति क्रोधी मनुष्य आँख वाला होते हुए भी अँधा ही होता है.”
  2. बाल्मीकि मुनि ने रामायण में कहा है-” क्रोध प्राणो को लेने वाला शत्रु है, जो अत्यंत तेज धार वाला तलवार के समान है, और सर्वनाश की ओर ले जाने वाली राह है.
  3. रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा है- ” जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप में नहीं कह सकता, उसी को क्रोध अधिक आता है.”
  4. महात्मा गाँधी- ” क्रोध को जितने में मौन सबसे अधिक सहायक है.”
  5. कन्फूशियस- ” क्रोध करने का मतलब है, दुसरो की गलतियों की सजा स्वयं को देना; जब क्रोध आये तो उसके परिणाम पर विचार करो.”
  6. गौतम बुद्धा- ” तुम अपने क्रोध के लिए दंड नहीं पाओगे, तुम अपने क्रोध द्वारा दंड पाओगे.”

एक कहावत है, की क्रोध किसी को इज्जत नहीं दिलाता. चाहे वो धनी हो या निर्धन. ” क्रोध से धनी व्यक्ति घृणा और निर्धन तिरस्कार का पात्र होता है.”

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क्रोध से होने वाले मानसिक प्रभाव

क्रोध और मन का बहुत ही गहरा सम्बन्ध है. क्रोध का मन की दूसरी दुखकारी भावनाओ से गहरा सम्बन्ध है. यदि क्रोध शीघ्र समाप्त हो जाए, तो उससे होने वाली शक्ति का क्षरण तत्काल रुक जाता है.

यदि क्रोध मन की गहराइयों में पहुंचकर जम जाये तो यह बैर की भावनाये बन जाती है और दुसरो के गुण, प्रेम, भावना, उच्च संस्कार सब भूलकर प्रतिपक्षी का नुकसान करने, दुसरो को हानि पहुंचाने की बुरी भावना निरंतर सताती रहती है.

क्रोधी स्वाभाव के कारन आपके दिमाग में हमेशा नकारात्मक विचार ही आया करता है. चिंता तथा अवसाद का आना स्वाभाविक ही है.

इसके अलावा आप अपने सम्बन्धो को भी क्षति पहुंचते है, साथ-साथ स्वयं की छवि को भी विपरीत रूप में प्रभावित करता है.

चिकित्सा विज्ञान के अनुसार जब क्रोध आता है तो शरीर की आंतरिक तथा बाह्य क्रियाये सभी प्रभावित होती है. इस स्तिथि में कुछ रसायनो की उत्त्पति अधिक होती है, कुछ कम. फलतः शरीर, स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह क्षति पहुँचाती है.

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क्रोध से होने वाले शारीरिक प्रभाव

क्रोध आते ही सबसे पहले शरीर की मांसपेशियाँ खींचने लगती है. हाथ और पैर की मांसपेशियों में तो विशेष रूप से खिचाव आता है, क्यूंकि लड़ाई की स्थिति में इन्ही अंगो को सबसे जायदा जोखिम उठाना पड़ता है.

मांसपेशियाँ के खिचाव का परिणाम पुरे शरीर पर परता है. हाथ-पैर तथा चेहरा के अतिरिक्त अन्य अंग भी सिकुड़ने लगता है. इसके अतिरिक्त क्रोध की अवस्था में श्वसन भी बहुत प्रभावित होता है.

वैज्ञानिको के अनुसार यह सब इस कारन होता है की क्रोध की अवस्था में शरीर की ऊर्जा का तेजी से क्षरण होने लगता है. इस क्षरित ऊर्जा को पूरा करने के लिए श्वसन क्रिया तेज हो जाती है.

फेफड़े पहले के अपेक्षा अधिक क्रियाशील होने लगते है, और सांस की गति बढ़ जाती है, और भी बहुत से नुकसान है, जैसे:- हाई ब्लड प्रेशर,हार्ट अटेक, सिरदर्द, नींद ना आना, त्वचा तथा पाचन सम्बन्धी समस्याएं होना, शरीर की इम्युनिटी कम होना आदि.

क्रोध की स्थिति में शरीर अपनी सुरक्षा-व्यवस्था के अनुसार विभिन्न परिवर्तन करता है. उस समय यकृत भी अधिक मात्रा में ग्लाइकोजिन निकालने लगता है.

इस प्रकार जो अतिरिक्त ऊर्जा का क्षरण होता है, उसकी यदि पूर्ति ना की जाए तो शरीर में कई विकार और रोग पनपने लगते है. क्रोध की स्तिथि में पाचन क्रिया भी अपना काम करना बंद कर देता है.

पेट तथा आंत की क्रियाशीलता उस समय मंद पर जाती है. अध्ययन के मुताबिक गुस्से में खाया गया भोजन पचता नहीं है. इसीलिए अत्यंत क्रोध की अवस्था में उल्टिया होना, जी मिचलाना,उबकाई और पेट में भारीपन की अनुभव आम बात है.

क्रोध की अवस्था में यह भी देखा गया है की मुँह एकदम सुख जाता है. उस समय मुँह के भीतर लार बनने की प्रक्रिया एकदम मंद पर जाती है. इसीलिए गुस्सा उतर जाने के बाद बहुतो को जोर की प्यास लगती है.

आँखों पर भी क्रोध का प्रभाव परता है. उस समय आँख की दृष्टि सिमा में फैलाव आ जाता है. इसी कारण बहुत अधिक क्रोध करने वाले को नेत्र रोग उत्पन्न होता है. वैसे तो पूरा शरीर ही क्रोध के प्रभाव में आता है. उस स्तिथि में हज़ारो नसों पर दबाब परता है.

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क्रोध के भयंकर परिणाम और ऋषि प्रचेता की कहानी

क्रोधी व्यक्ति जब किसी पर क्रुद्ध होकर उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाता तो अपने पर क्रोध करने लगता है. क्रोध मनुष्य को पागल की स्तिथि में पहुंचा देता है.

बुद्धिमान और मनीषी व्यक्ति क्रोध का कारन उपस्थित होने पर भी क्रोध का आक्रमण अपने पर नहीं होने देते. वे विवेक का सहारा लेकर उस अनिष्टकर आवेग पर नियंत्रण कर लेते है, इस प्रकार अपनी हानि से बच जाते हैं.

ऋषि प्रचेता की कहानी –

  • प्रचेता एक ऋषि पुत्र थे. स्वयं भी साधक और वेद-वेदांग के ज्ञाता थे. सयम और नियम से रहते थे. दिन- अनुदिन तप और संचय कर रहे थे. किन्तु उनका स्वाभाव बड़ा क्रोधी था.
  • उन्होंने क्रोध को व्यसन बना लिया था और उससे जब-तब हानि उठाते रहते थे. किन्तु ना जाने वो अपनी इस दुर्बलता को दूर क्यों नहीं कर पाते थे.
  • एक लम्बी साधना से प्रचेता जो शक्ति संचय करते थे, वह किसी कारण से क्रोध करके नष्ट कर लेते थे. होना यह चाहिए था की वे अपनी इस अप्रगति का कारण खोजते और उसको दूर करते, लेकिन वे स्वयं पर ही इस अप्रगति से क्रुद्ध रहा करते थे.
  • एक मानसिक तनाव बना रहने से उनका स्वाभाव ख़राब हो गया था. वे जरा-जरा सी बात पर उत्तेजित हो उठते थे.
  • एक बार वे एक रास्ते से गुजर रहे थे। उसी समय दूसरी ओर से कल्याणपाद नाम का एक और व्यक्ति आ गया. दोनों एक दूसरे के सामने आ गए.
  • रास्ता बहुत संकरा था. एक के राह छोड़े बिना दूसरा जा नहीं सकता था. लेकिन कोई भी रास्ता छोड़ने को तैयार नहीं था.
  • हठपूर्वक दोनों आमने-सामने खड़े रहे और हटना ना हटना उन दोनों ने प्रतिष्ठा-अप्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया.
  • अजीब स्तिथि पैदा हो गई. प्रचेता को कल्याणपाद के धृष्टता पर क्रोध आ गया.
  • उन्होंने उसे शाप दे दिया की वह राक्षस हो जाये. तप के प्रभाव से कल्याणपाद राक्षस बन गया और प्रचेता को ही खा गया.
  • क्रोध के इस भयंकर प्रभाव से प्रचेता अपनी रक्षा ना कर सके और अपनी ही क्रोध की अग्नि में जलकर भस्म हो गए.
  • इसीलिए कहा गया है, क्रोध एक ऐसा शाप है, जो मनुष्य खुद को देता है.

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क्रोध से बचने के उपाय और उसका निराकरण

इस सर्वनाशकारी क्रोध पर कैसे नियंत्रण किया जाए?

अक्सर देखा जाता है, की क्रोध ना करने का संकल्प लेने बावजूद भी कई बार ऐसे परिस्थितिया बन जाती है, जब सारे संकल्प-विकल्पों को तोड़कर क्रोध का आवेश उमड़ आता है.

जब मनस्थिति शांत होती है, तब यह अनुभव होता है, की क्रोध आया था.

क्रोध अपने आप तो पैदा नहीं होता. वह अपनी मानव संतान के समान ही अपने से ही पैदा होता है. अपना ही नाश करता है. कहते है – “क्रोध पतन का वह मार्ग होता है, जो मनुष्य स्वयं निर्मित करता है.

ऐसे संतान से दूर रहने में ही भलाई है. यहाँ कुछ उपाय है जिसे अपनाकर आप क्रोध पर नियंत्रण पाया जा सकता है.

  1. अपना ध्यान क्रोध के माध्यम से हटा लीजिये. जैसे ही आपको गुस्सा आये अपना ध्यान उस और से हटाकर कही और लगाए. जैसे – गिनती करना, पानी पीना, गहरी सांस लेना आदि.
  2. ये सोचिये जैसा करेंगे वैसा पाएंगे. क्रोध से होने वाले परिणामो के बारे में सोचिये.
  3. शरीर को विश्राम दीजिये.
  4. योग प्राणायाम पर ध्यान दीजिये. स्वाभाव जरूर बदलेगा. मन शांत रहेगा. रोज 10 मिनट प्राणायाम करने से बेहद फायदा मिलेगा.

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सारांश

कोई भी मानसिक विकार या आदत कितने समय हमारे साथ रहेगी, इसका निर्धारण हम खुद कर सकते है. क्रोध भी एक ऐसे ही आदत है. जिसे हम स्वाभाविक मानकर अपनाये रखते है, और उसके दुष्परिणामों को जीवन भर के लिए स्वीकार कर लेते हैं.

क्रोध एक प्रकार की आवेशजन्य स्तिथि है. जो व्यक्ति को रुग्ण बनती है, उसका सम्मान गिराती है. क्रोध अनीति के प्रति तो आना ही चाहिए, किन्तु वह विवेक से जुड़ा हो और सौद्देश्य हो.

समझदार व्यक्ति अपनी शालीनता खोये बिना ही अपना आक्रोश व्यक्त कर सकता है. इससे अपनी सम्मान रक्षा के साथ-साथ अनीति के प्रतिकार का दायित्व भी पूरा होता है. यही एक सज्जन के जीवन की रीती रिवाज होनी चाहिए.

उम्मीद है आपको यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी. इस जानकारी के जरिये आपको अपने मन को नियंत्रण करने में मदद मिलेगा. फिर भी कोई जानकारी शेष हो तो आप कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर पूछे. बहुत जल्द मिलेंगे एक नए विषय पर एक नए जानकारी के साथ. धन्यवाद.

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Riya Jha

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