व्यवसाय का मकसद लाभ कमाने से है. लाभ कमाने के लिए व्यवसाय का विकास होना जरूरी है. व्यवसाय का विकास कैसे करना चाहिए. हर एक व्यवसाय के लिए अलग तरीका जरूर है. लेकिन कुछ बेसिक तरीका है जो सभी व्यवसाय में होनी चाहिए. कुछ लोग व्यवसाय के विकास का मतलब ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाना समझते हैं. लेकिन, सिर्फ लाभ कमाने से विकास नहीं हो सकता है. सही मायने में विकास का मतलब व्यवसाय में जुड़े सभी लोगों का विकास होनी चाहिए.
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व्यवसाय की शुरुआत
प्राचीन काल में भारत व्यवसाय (Business) और अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से बहुत समृद्ध देश था. प्राचीन समय में भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था. कई ऐसे खुदाई और ऐतिहासिक इस बात का प्रमाण देती है. द्वापर और त्रेता युग में यहाँ इतना धन था जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है. गुजरात के द्वारकाधीश में कृष्ण का पूरा महल सोने का था. भारत की सांस्कृतिक धरोहर बहुत समृद्ध है. भारत कई आक्रमणों (विदेशी, मुग़ल) को झेलने के बाद भी अपने को दुनिया की लिस्ट में अच्छे स्थान पर रखे हुए है.
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शुरुआत से ही भारत में व्यवसायी वर्ग का जिक्र रहा है और किसी भी राष्ट्र का आर्थिक स्थिति उस देश के व्यवसाय पर बहुत ज्यादा निर्भर करता है. शुरूआती दिनों में भारत की अर्थ व्यवस्था कृषि पर आधारित थी. जैसा की पिछले पोस्ट में बताया गया व्यवसाय का मतलब वस्तु या सर्विस का उत्पादन आर्थिक लाभ के लिए किया जाता है. लेकिन, शुरूआती समय में लोग अपने उपयोग की वस्तुओं का उत्पादन खुद करते थे. उस वक़्त न ही खरीददार था न ही बेचने वाला क्यूंकि, सभी लोग खुद के लिए उत्पादन का काम करते थे. समय के साथ विकास हुआ और लोगों को अन्य कई वस्तु और सर्विस की जरूरत महसूस हुई. परिणामस्वरूप, आवश्यकता के अनुसार कुछ और भी काम करने लगे. अब भी लोग व्यवसाय में लिप्त नहीं हुए थे. एक जो खेती करता था वह खाने के लिए भोजन सभी को देता था दूसरा जो अन्य काम करता था वह अपना वस्तु या सर्विस अन्य को देता था. इसी तरह एक दूसरे से मिल कर इस जगत का निर्माण हुआ. समय रुकता नहीं और वह अपने अनुसार बदलाव करता रहता है और समय के साथ आज इतना बदलाव हो गया है कि हर व्यक्ति किसी एक खास कार्य में व्यस्त है. इस तरह काम करते करते उनके कार्य कुशलता में बदलाव होना शुरू हो गया. अब हर कोई बदलाव (Modification) की बात करने लगा है. लोग आवश्यकता से अधिक का उत्पादन करने लगे और इसे बाजार तक पहुंचा दिया. जब यह खरीद बिक्री का सिलसिला बढ़ गया तो व्यवसाय ने नया रूप और मोड़ ले लिया तो यहाँ से व्यापार की शुरुआत हुई.
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व्यवसाय का विकास
व्यवसाय का विकास आजादी बाद ही हुआ है. क्यूंकि, गुलाम का मतलब आप समझ सकते हो. आज व्यवसाय के क्षेत्र में कई बदलाव किया गया जिससे लोग नए स्टार्टअप के बारें में सोच सकते हैं और कुछ लोगों ने बहुत ही अच्छा स्टार्टअप किया है. आज के समय में हमारा देश व्यवसाय के हिसाब से दुनिया में अपना परचम फहरा रहा है. स्टार्टअप इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसे योजनाओं ने इसे और तेज कर दिया है. भारत आज औद्योगिक उत्पादन के लिए जिस तकनीक का प्रयोग कर रहा है. वह देश में ही विकसित हो रहा है. कुछ मूल भूत बातें जो व्यवसाय के विकास के लिए अति आवश्यक है.
- बिकने लायक बिज़नेस आईडिया होनी चाहिए.
- व्यवसाय का मकसद ग्राहक को खुश करना होना चाहिए.
- ग्राहक के काम को आसान बनाना होनी चाहिए.
- ग्राहक को उम्मीद से ज्यादा दीजिये.
- व्यवसाय के प्रति समर्पित रहिये.
- ग्राहक और कर्मचारी के प्रति ईमानदार होना चाहिए.
- कंपनी में काम कर रहे व्यक्ति का सम्मान करना जरूरी है.
- सफलता का जश्न जरूर मनाइये.
- कमपनी में काम करने वाले सभी लोगों को सुनिए.
- शुरूआती समय में फिजूल के खर्च पर अंकुश लगाएं.
- व्यवसाय से जुड़े सभी काम की जानकारी व्यवसाय मालिक को होनी चाहिए.
- धंधे में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा होना चाहिए.
- क्यूंकि मुनाफा से ही ऊपर लिखा गया कार्य अच्छे से किया जा सकता है.
व्यवसाय के उद्देश्य
व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य लाभ कामना है. और लाभ कमाने के लिए व्यवसाय का विकास बहुत जरूरी है. लेकिन, लाभ के अलावे भी व्यवसाय का कई कई उद्देश्य है. व्यवसाय से देश और समाज दोनों का विकास होता है. सरकार के पास इतनी नौकरी नहीं है कि वह सभी को नौकरी दे सके. सबसे ज्यादा लोग निजी कंपनियों में काम कर रहे है या खुद का कोई कोई काम कर रहे हैं.
- लाभ कमाना
- सामाजिक उद्देश्य
- मानवीय उद्देश्य
- राष्ट्रीय उद्देश्य
- वैश्विक उद्देश्य
व्यवसाय की जिम्मेदारी (Responsibility)
व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाना है. लेकिन, इसका मकसद सिर्फ यहीं ख़त्म नहीं हो जाता है. लाभ कामना तो जरूरी, बहुत जरूरी है जिससे बिज़नेस को सुचारू रूप से चलाया जा सके. व्यवसाय इस समाज, राज्य, देश और दुनिया का एक हिस्सा है. व्यवसाय इसी समाज में किया जाता है और समाज का हिस्सा होने के नाते समाज देश और दुनिया के प्रति भी कुछ जिम्मेदारी होती है. व्यवसाय को सही और सुचारु रूप से चलाने के लिए कई जिम्मेदारियों का निर्वाह करना होता है. जैसे निवेशक को समय पर उसके निवेश का लाभ देना, साथ काम कर रहे लोगों को समय पर वेतन और सुरक्षा मुहैया करवाना, ग्राहकों की जरूरत उचित मूल्य पर देना, जो सजीव निर्जीव बिज़नेस में निहित है उसकी सुरक्षा और देखभाल करना. कुछ जरूरी जिम्मेदारियां है जिसे निचे दर्शाया गया है.
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- निवेशक के प्रति जिम्मेदारी
- व्यवसाय सही तरीके से चलाना,
- पूँजी तथा अन्य संसाधनों का उचित प्रयोग,
- ज्यादा से ज्यादा लाभ कामना,
- निवेश की सुरक्षा,
- ब्याज का नियमित भुगतान,
- समय पर निवेशक का पैसा लौटना,
- कर्मचारियों के प्रति उत्तरदायित्व
- वेतन / मजदूरी का नियमित तथा समय पर भुगतान,
- उचित कार्य दशाएँ और कल्याणकारी सुविधएँ,
- नौकरी की सुरक्षा,
- सामाजिक सुरक्षा (भविष्य निधि, सामूहिक बीमा, पेंशन, मुआवजा)
- कुशल प्रशिक्षण,
- ग्राहकों के प्रति जिम्मेदारी
- उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की पूर्ति करना,
- गुणवत्ता का नियमित निरिक्षण,
- नियमित आपूर्ति,
- मूल्य उचित और अनुकूल होना चाहिए,
- वस्तु के बारें में सम्पूर्ण जानकारी,
- बिक्री के बाद भी उचित सेवा,
- उपभोक्ताओं की शिकायत जल्द से जल्द दूर किया जाना चाहिए,
- कम वजन और मिलावट बिलकुल भी नहीं करना चाहिए,
- प्रतियोगियों (Competitor) के प्रति उत्तरदायित्व
- ज्यादा बिक्री के लिए ज्यादा कमीशन नहीं दें,
- ज्यादा छूट या मुफ्त का नहीं दें.
- विज्ञापन में किसी को निचा न दिखाएँ बल्कि, अपने प्रोडक्ट / सर्विस की विशेषता बताएं.
- सरकार के प्रति उत्तरदायित्व
- सरकार के निर्देशों का सख्ती से पालन,
- ऐसा व्यवसाय नहीं करें जिसे सरकार इजाजत नहीं देती है,
- घूस लेन देन / रिश्वतखोरी / गैर कानूनी / भ्रष्टाचार नहीं करें,
- समाज के प्रति उत्तरदायित्व
- समाज के पिछड़े तथा कमजोर वर्गों की सहायता,
- सामाजिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा,
- रोजगार के अवसर,
- पर्यावरण की सुरक्षा,
- शिक्षा, चिकित्सा, विज्ञान प्रोद्यौगिकी के क्षेत्रों में सहायता,
भारतीय व्यवसाय से जुड़ा कुछ रोचक तथ्य
- भारत ने व्यापार व वाणिज्य के क्षेत्र में अपनी यात्रा 5000 ई.पू. शुरू कर दी थी.
- कई ऐतिहासिक साक्ष्यों गवाह है 5000 ई.पू. भारत में सुनियोजित शहर थे.
- भारतीय व्यापारियों में व्यवसाय के लिए मुद्रा के प्रयोग का चलन था.
- अंग्रेज सर्वप्रथम भारत में व्यापार करने के लिए ही आए थे, जिन्होंने बाद में यहां अपना राज्य स्थापित कर लिया.
- भारत के व्यापारियों का व्यावसायिक संबंध अरब, मध्य व दक्षिण पूर्व एशिया के व्यापारियों से भी था.
- संयुक्त परिवार प्रथा तथा व्यवसाय में श्रम विभाजन का विकास भी यहीं हुआ, जो आज तक प्रचलित है.
- उपभोक्ता केंद्रित व्यवसाय तकनीक पुराने समय से भारतीय व्यवसाय का एक अभिन्न अंग रहा है.
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