Mutual Fund जिसका नाम सुनते ही लोग कतराते थे लेकिन आज यह इन्वेस्टमेंट के लिए बहुत ही अच्छा विकल्प है. ऐसे में इन्वेस्ट करने स पहले यह कितने तरह का होता है यह जानना जरूरी है. अभी तक म्यूच्यूअल फण्ड से संबंधित कई आर्टिकल पब्लिश किया जा चूका है. आज के पोस्ट में यह कितने तरह का होता है इसके बारें में बताया गया है. म्यूच्यूअल में इन्वेस्टमेंट का कई तरीका है. लेकिन जानकारी के अभाव में लोग कई बार गलतियाँ कर देते हैं. इन्वेस्ट करने के लिए यह बहुत अच्छा विकल्प है. लेकिन रियल एस्टेट से ज्यादा रिटर्न नहीं है. म्यूच्यूअल फण्ड में 1000 रुपए से भी शुरू कर सकते हैं. लेकिन, रियल एस्टेट में ऐसा संभव नहीं है. अच्चा सामान ज्यादा पैसे में मिलता है. यदि प्रॉपर्टी लेना हो तो यह 1000 या 100000 रुपए में नहीं मिलता है. इसके लिए बहुत बड़ी रकम की जरूरत होती है. निवेश सुविधा और निवेशकों के आधार पर म्यूच्यूअल फण्ड कई तरह जका होता है. इसमें कई आजादी दी गई है.
Table of Contents
Types of Mutual Fund
विशेषता के आधार
फण्ड ऑफ़ फंड्स : इस फण्ड में विभिन्न म्यूच्यूअल फण्ड में पैसा निवेश किया जाता है. इसका रिटर्न निवेशित धन के परफॉरमेंस पर निर्भर करता है. इसे मुलती मेनेजर फण्ड भी कहा जाता है. इसे एक ‘सेफ इन्वेस्टमेंट’ माना जा सकता है, क्योंकि इसमें निवेशित धन में विभिन्न तरह के म्यूच्यूअल फण्ड स्कीम शामिल होती हैं.
ग्लोबल फण्ड : इस फण्ड की सहायता से विदेश के किसी भी हिस्से में स्थित कंपनी में पैसा लगाया जा सकता है. ये इंटरनेशनल फण्ड से भिन्न होता है, क्योंकि इस स्कीम के तहत निवेशक उन कम्पनियों में भी पैसे लगा सकता है, जो उसके देश में स्थित हो.
इमर्जिंग मार्केट फण्ड : इस मार्केटिंग फण्ड में निवेशित धन विकसित होते देशों के निहित मार्केट में लगाया जाता है. इसमें निवेशित धन का मुख्य उदेश्य भविष्य में लाभ कमाना होता है. इसमें रिस्क बहुत ज्यादा होता है, जो विकासशील देश की घटती- बढती अर्थव्यवस्था पर आधारित होता है. इसमें एक बड़े लाभ की भी सम्भावना होती है.
सेक्टर फण्ड : इस फण्ड में इन्वेस्टमेंट मार्केटिंग क्षेत्र में लगाया जाता है. मार्केटिंग में निवेश के लिए आम तौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर का प्रयोग किया जाता है. निवेशित धन का रिटर्न चयनित मार्केट के उतार चढ़ाव पर निर्भर करता है.
इंटरनेशनल फण्ड : इस म्यूच्यूअल फण्ड के अंतर्गत विदेशी कंपनियों में पैसा लगाया जाता है. इसके साथ ही विकासशील देशों में स्थित कंपनियों में भी पैसा लगाया जाता है. इसके तहत उन कम्पनियों में पैसा नहीं लगाया जा सकता है, जो निवेशक के देश में स्थित हो.
रियल एस्टेट फण्ड : इस म्यूच्यूअ का पैसा रियल एस्टेट कम्पनियों में लगाया जाता है. इसके तहत रियाल्टार, बिल्डर, प्रॉपर्टी मैनेजमेंट कंपनी आदि में निवेश किया जाता है. रियल एस्टेट म्यूच्यूअल फण्ड में रिरन ज्यादा मिलता है. लेकिन रिस्क भी ज्यादा होता है. क्यूंकि, कभी कभी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट पर स्टे भी लग जाता है. यदि रियल एस्टेट में काम नहीं होता है तो रिटर्न मिलने में समय लग जाता है.
कमोडिटी फोकस्ड स्टॉक मार्केट : इस म्यूच्यूअल फण्ड के तहत कमोडिटी मार्केट में पैसा लगाया जाता है. इसमें ज्यादातर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी है. ऐसे कंपनी में रिटर्न की संभावना ज्यादा रहती है.
एक्सचेंज ट्रेड फण्ड : इसमें ओपन और क्लोज्ड दोनों तरह के स्कीम पाए जाते हैं. इसमें निवेश करना स्टॉक मार्केट में निवेश करना होता है. इस स्कीम में सर्विस चार्ज बहुत कम होता है.
इनवर्स फण्ड : यह पारंपरिक म्यूच्यूअल फण्ड से अलग है. इसमें निवेशक को लाभ उस समय प्राप्त होता है जब मार्केट गिरता है. मार्केट के बढ़ने पर इसमें निवेशक को हानि होती है. इसमें निवेश करने वाले लोगों का उद्देश्य एक बड़ा लाभ कमाना होता है. अतः इस म्यूच्यूअल फण्ड में बहुत बड़ी रिस्क होती है.
एसेट्स एलोकेशन फण्ड : एसेट एलोकेशन में दो तरह से निवेश किया जाता है. पहला टारगेट डेट फण्ड और दूसरा टारगेट एलोकेशन फण्ड. इसमें निवेशित धन को विभिन्न किस्तों में बाँट दिया जाता है और विभिन्न बांड अथवा इक्विटी मार्केट में निवेश किया जाता है.
मार्केट न्यूट्रल फण्ड : इसमें किसी मार्किट में सीधे सीधे निवेश नहीं करते हैं. इसके अंतर्गत ट्रेज़री बिल, ETFs आदि में निवेश किया जाता है. इसमें निवेश का मूल मकसद एक स्थायी विकास और नियमित लाभ है. यह विकल्प सही है.
गिफ्ट फण्ड : इसमें सरकार की सुरक्षा के लिए निवेशित किया जाता है. सरकारी क्षेत्र में निवेशित होने के कारण इसमें किसी तरह का रिस्क नहीं पाया जाता. अतः जो व्यक्ति रिस्क फ्री स्कीम में पैसा लगाना चाहता है, उसके लिए ये एक बेहतर स्कीम है.
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रिस्क के आधार पर
हाई रिस्क : इस प्लान में निवेश पर अधिक से अधिक लाभ कमाने वाले लोग इन्वेस्ट करते हैं. इनवर्स म्यूच्यूअल फण्ड इसी तरह का एक हाई रिस्क फण्ड प्लान है. इसमें बड़े लाभ की सम्भावना ज्यादा रहती है.
मीडियम रिस्क : इस प्लान में रिस्क कुछ ज्यादा होता है. ये उन लोगों के लिए जो कुछ रिस्क लेकर अपने निवेश पर अधिक लाभ कमाना चाहते हैं. इस तरह के फण्ड प्लान का इस्तेमाल एक लम्बे समय और बड़े लाभ के लिए किया जाता है.
लो रिस्क : इसमें वैसे लोग निवेश करते हैं, जो अपने पैसे पर किसी तरह का रिस्क नहीं चाहते. जितना उन्होंने जमा किया है उतना तो मिलना ही चाहिए साथ ही कुछ ब्याज भी मिलना चाहिए. इस तरह के इन्वेस्टमेंट में डेब्ट मार्केट या ऐसी जगह पैसा लगाया जाता है जिसमे लम्बे समय तक पैसा रखना होता है. लो रिस्क होने की वजह से इसमें निवेशक को रिटर्न भी कम मिल पाता है.
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संपत्ति वर्ग के आधार पर
इक्विटी फण्ड : यह फण्ड इक्विटी स्टॉक अथवा शेयर कंपनियों में होता है. इन्हें मुख्यतः ‘हाई रिस्क’ फण्ड माना जाता है लेकिन, मिलने वाला रिटर्न भी बहुत अधिक लाभ वाले होते हैं. इस फण्ड के अंतर्गत इंफ्रास्ट्रक्चर, या जल्दी चलने वाले उपभोक्ता सामान (FMCG), बैंक आदि भी शामिल हैं.
डेब्ट फण्ड : यह फण्ड डेब्ट इंस्ट्रूमेंट जैसे, सरकारी बांड, कंपनी डिबेंचर अथवा फिक्स इनकम एसेट में निवेश किया जाता है. इस तरह के निवेश को ‘सेफ इन्वेस्टमेंट’ कहा जाता है और इसमें मिलने वाला लाभ पूर्व निश्चित होता है. इस फण्ड के रिटर्न में टैक्स नहीं लगता है अतः यदि निवेशक को 10,000 रुपए से अधिक का लाभ होता है, तो वो खुद से इसका टैक्स दे सकता है.
मनी मार्केट लिक्विड फण्ड : इस फण्ड का निवेश टी- बिल, CP आदि में किया जाता है. इस तरह के निवेश को भी ‘सेफ इन्वेस्टमेंट’ के अंतर्गत रखा जाता है. इसमें पाए जाने वाला रिटर्न जल्द मिलता है और ये रिटर्न औसत होता है. मनी मार्किट फण्ड को कैश मार्किट फण्ड की तरह भी देखा जाता है. इस तरह के फण्ड में निवेश करने से पहले निवेशक को ये ध्यान रखना चाहिए कि इसमें ब्याज रिस्क, पुनः निवेश रिस्क और क्रेडिट रिस्क होता है.
बैलेंस अथवा हाइब्रिड फण्ड : इसमें ‘मिक्स एसेट क्लास’ में निवेश किया जाता है. इसमें कहीं कहीं इक्विटी एसेट्स डेब्ट से अधिक होता है. इसमें होने वाले रिस्क और रिटर्न दोनों लगभग सामान ही होते हैं. इस फण्ड का एक बेहतर उदाहरण फ्रेंक्लिन इंडिया के बैलेंस फण्ड- DP (G) में देखा जा सकता है. इस फण्ड में निवेश किये गये धन का 65 से 80 प्रतिशत इक्विटी फण्ड तथा बाक़ी हिस्सों का निवेश डेब्ट फण्ड में किया जाता है.
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संरचना के अनुसार
ओपन एंडेड स्कीम्स : इस म्यूच्यूअल फण्ड को साल में किसी भी समय खरीदा और बेचा जा सकता है. इसके यूनिट का क्रय- विक्रय एनएवी के तहत होता है. यह फण्ड मुख्य तौर पर निवेशक को ये आज़ादी देता है कि वो जब तक चाहे तब तक इस फण्ड में पैसे लगा सकता है. इसमें पैसे लगाने की कोई सीमा नहीं है. निवेशक अपने हिसाब से पैसे लगा सकता है. इस फण्ड में निवेश करने के लिए अतिरिक्त शुल्क भी देना पड़ता है.
क्लोज्ड एंडेड स्कीम : क्लोज्ड एंडेड स्कीम यूनिट इसके शुरू होने के समय ख़रीदा जा सकता है. साल के मध्य में इस योजना पर निवेश नहीं किया जा सकता है. इस फण्ड के यूनिट इनके मिच्योरिटी के बाद बेचे जा सकते हैं. इस स्कीम में लिक्विडिटी लाने के लिए कभी कभी इस फण्ड को स्टॉक एक्सचेंज से भी जोड़ दिया जाता है. इसके यूनिट स्टॉक मार्केट की सहायता से ही बेचा जा सकता है.
इंटरवल स्कीम : इस स्कीम में ओपन और क्लोज्ड दोनों तरह की सुविधा पायी जाती है. इसके यूनिट की ओपन एंडेड स्कीम की तरह फण्ड कार्यकाल के दौरान पुनः खरीद की जा सकती है. कंपनी का फण्ड मैनेजमेंट वैद्य समय अंतराल के दौरान पूर्व स्थापित यूनिट होल्डर से शेयर खरीदने की सुविधा देती है.
उम्मीद करता हूँ Mutual Fund कितने तरह का होता है यह समझ आ गया होगा. यदि इसके अलावे भी आपका कोई प्रश्न हो तो कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं.
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