Babu Jagjivan Ram Biography in Hindi | बाबू जगजीवन राम जीवन परिचय

दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले गरीबों और वंचितो के मसीहा बाबू जगजीवन राम 50 सालों तक सांसद रहे। इतने लंबे समय तक संसद में अपनी उपस्थिति बनाये रखने के लिये उनका नाम वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज है।

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Babu Jagjivan Ram Biography

नाम – जगजीवन राम
अन्य नाम – बाबू जी
पूरा नाम – बाबू जगजीवन राम
जन्मतिथि – 5 अप्रैल, सन् 1908 ई.
जन्मस्थान – बिहार के भोजपुर के चन्दवा गाँव में
माता का नाम – बसंती देवी
पिता का नाम – शोभा राम
पत्नी – इंद्राणी देवी
पुत्री – मीरा कुमार
पुत्र – सुरेश कुमार
राष्ट्रीयता – भारतीय
दल – राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और जनता दल
पद – श्रम मंत्री, रेल मंत्री, कृषि मंत्री, रक्षा मंत्री और उप-प्रधानमंत्री आदि पदों पर रहे
शिक्षा – स्नातक ( कलकत्ता विश्वविद्यालय )
मृत्युतिथि – 6 जुलाई, सन् 1986 ई.

वह देश के एक लोकप्रिय दलित नेता थे। जो देश की आजादी के साथ ही दलित राजनीति के पोस्टर बॉय बन गये थे। जगजीवन राम देश रक्षामंत्री भी रहे और दो बार प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे लेकिन प्रधानमंत्री बनते बनते रह गये।

वे भारत के प्रथम दलित उप प्रधानमंत्री भी रहे। जगजीवन राम को स्नेह से लोग बाबूजी भी कहते थे। आज के इस लेख में आप एक ऐसे दलित नेता के बारे में जानेंगे जिन्होनें अपना पूरा जीवन दलितों के हितों की लड़ाई में समर्पित कर दिया।

Babu Jagjivan Ram Biography

बाबू जगजीवन राम का जीवन परिचय

बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल 1908 को एक बिहार के भोजपुर में एक दलित परिवार में हुआ। उस समय भारत में दलितों को लेकर भेदभाव चरम पर था। ऐसे में बाबू जी को भी उस भेदभाव का सामना करना पड़ा।

जब बाबू जगजीवन राम आरा में रहकर अपनी हाईस्कूल की पढ़ाई कर रहे थे त​ब का एक किस्सा बड़ा मशहूर है। उस समय स्कूलों, रेलवे स्टेशनों और दूसरों सार्वजनिक जगहों पर पानी के दो घड़े रखे जाते थे।

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एक हिन्दुओं के लिये दूसरा मुसलमानों के लिये। एक बार स्कूल में जगजीवन राम ने एक घड़े से पानी पी लिया। जिस पर बबाल मच गया। शिकायत​ प्रिंसिपल के पास पहुची की एक अछूत लड़के ने हिन्दुओं के लिये रखे गये घड़े से पानी पी लिया।

प्रिंसिपल ने अगले दिन स्कूल में तीसरा घड़ा रखवा दिया जो कि दलितों के लिये था। जगजीवन राम ने उस घड़े को तोड़ दिया। स्कूल प्रशान ने नया घड़ा रखबाया तो बाबू जगजीवन राम ने उसे भी तोड़ दिया और बाद में ​दलितों के लिये अलग से घड़ा रखना बंद करना पड़ा।

बाबूजी ने साल 1920 में आरा के अग्रवाल विद्यालय में उच्च् शिक्षा के लिये प्रवेश किया। बाबू जी की रूचि विदेशी भाषाओं में थी, जिस वजह से बाबूजी अंग्रेजी भाषा में निपुण हो गये।

वहीं बाबू जगजीवन राम ने बंगाली हिन्दी और संस्कृत में भी महारत हासिल कर ली थी। साल 1925 बाबू जगजीवन राम की शिक्षा के लिये बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय में गये।

लेकिन भेदभाव के चलते उन्होने इसे छोड़ दिया और साल 1931 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से विज्ञान में अच्छे नंबरों से ग्रेजुएशन किया।

साल 1935 में जगजीवन राम का विवाह कानपुर के एक प्रख्यात डॉक्टर बीरबल की सुपुत्री इंद्राणी देवी से हुआ। बाबूजी के दो बच्चे हुये पुत्र का नाम सुरेश रखा गया व पुत्री का नाम मीरा रखा गया। उनकी बेटी मीरा कुमार लोकसभा की अध्यक्ष रह चुकी हैं।

बाबू जगजीवन राम का राजनीतिक जीवन

बाबू जगजीवन राम ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत कलकत्ता से किया। उन्होने कलकत्ता में एक विशाल मजदूर रैली का अयोजन किया।

इस रैली के आयोजन के बाद देश की दूसरों नेताओं की नजर उन पर पड़ी। बाबू जी ने चंन्द्र शेखर आजाद तथा लेखक मन्मनाथ गुप्त जी के साथ भी काम किया। साल 1934 में जब बिहार में भकूंप आया तो बाबू जी ने बिहार के लोगों की भरपूर मदद की एवं राहत कार्य किये।

उसी दौरान जगजीवन राम की मुलाकात सदी के सबसे बड़े नेता महात्मा गांधी से हुई और इसके बाद वे भारतीय राजनीति की मुख्य धारा से जुड़ गये।

साल 1936 में 25 वर्ष की आयु में उन्हे बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामांकित किया गया। 1937 में डिप्रेस्ड क्लास लीग के उम्मीदरवार के रूप में चुनाव लड़ा और निर्विरोध विधायक बनें।

अंग्रेजों ने जगजीवन राम को अपने साथ मिलाने की कोशिश की और उन्हे पैसे व मंत्री पद का लालच दिया। लेकिन जगजीवन राम ने अंग्रेजों का साथ देने से मना कर दिया।

जिसके बाद बिहार में कांग्रेस की सरकार बनी और वे मंत्री बने। बाद में महात्मा गांधी के कहने पर देश भर में बनी कांग्रेस सरकार ने इस्तीफा दे​ दिया। जिसके बाद उन्होने महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और जेल गये।

जेल से छूटने के बाद 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और फिर से जेल गये।

साल 1943 में जेल से रिहा होने के बाद फिर से जगजीवन राम देश की आजादी के लिये सक्रिय हो गये। अगस्त 1946 में जब लार्ड वावेल ने भारत में अंतरिम सरकार के गठन के लिये 12 राष्ट्रीय नेताओं को आमंत्रित किया था उनमें बाबू जगजीवन भी शामिल थे।

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2 सितंबर 1946 में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ। उस सरकार में जगजीवन राम को श्रम मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया।

नेहरू के मंत्रीमंडल में जगजीवन राम अकेले दलित नेता थे। यहीं से बाबू जी का केंद्रीय मंत्री के रूप में सफर तय हुआ। इसके बाद वे दूरसंचार मंत्री, रेलमंत्री, रक्षामंत्री, परिवहन मंत्री, कृषि एवं खाद्य मंत्री जैसे कई महत्वपूर्ण पदों को दायित्व संभाला।

बाबू जी की वजह से चुनाव हार गई थी इंदिरा

वैसे तो बाबू जगजीवन राम कांग्रेस के पक्के वफादार नेता थे। लेकिन जब ​इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया तो बाबू जगजीवन राम इंदिरा गांधी से खफा हो गये थे।

दरअसल जब 25 जून 1975 को इलाहबाद की हाईकोर्ट बैंच के जस्टिस सिन्हा ने फैसला सुनाया कि रायबरेली से इंदिरा गांधी का निर्वाचन अयोग्य है तो जगजीवन राम को लग रहा था कि इंदिरा गांधी अब उन्हे प्रधानमंत्री बना देंगी।

क्योंकि उस समय बाबू जगजीवन राम कांग्रेस (इंदिरा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। लेकिन इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी। जिसके बाद जगजीवन राम प्रधानमंत्री बनते बनते रह गये।

इमरजेंसी खत्म होने के बाद 23 जनवरी 1977 को चुनाव की घोषण हुई तो जगजीवन राम ने अचानक कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और नई पार्टी कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी का गठन कर जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया।

जगजीवन राम के पास देश भर के दलितों का समर्थन था। जिसकी वजह से इंदिरा गांधी चुनाव हार गई। एक बार फिर ऐसा समय आया कि सबको लग रहा था कि बाबू जगजीवन राम ​इस बार देश के प्रधानमंत्री बनेंगे लेकिन उनकी किस्मत में प्रधानमंत्री बनना नही था और इस बार बाजी मोरारजी देसाई मार ले गये।

उन्हे सरकार में रक्षामंत्री का पद दिया गया और चौधरी चरण सिंह के साथ उप प्रधानमंत्री बनाया गया।

6 जुलाई 1986 में बाबू जगजीवन राम का देहांत हो गया। बाबू जगजीवन राम जीवन भर दलितों की लड़ाई लड़ते रहे। वे अपनी आंखिरी सांस तक सांसद रहे।

वे भारत के महान नेताओं में एक थे जिन्होने स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के बाद भी देश को एक नई दशा व दिशा दी। सबसे ज्यादा संसद में बैठने के अलावा सबसे ज्यादा साल तक कैबिनेट मंत्री बने रहने का भी रिकार्ड इनके नाम है। 

ईस्टर्न कमांड के लेफ्टिनेट जैकब ने अपने मेमोराइट्स में लिखा है कि भारत को इनसे अच्छा रक्षा मंत्री कभी नही मिला।

बाबू जगजीवन राम का स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान

बाबू जगजीवन राम शिक्षित थे जिसके कारण वो अंग्रेजों की “फूट डालो, राज करो” की नीति को अच्छे से समझते थे और वे गांधी जे के विचारों के प्रबल समर्थक थे।

उस समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत दल से जुड़ गये. हिन्दू-मुश्लिम विभाजन, दलितों और सवर्णों के बीच मतभेद आदि समस्याएं थी।

मुस्लिम लीग की कमान जिन्ना के हाथ में थी और जिन्ना अंग्रेजी सरकार के इशारों पर ही कार्य करते थे। महात्मा गांधी ने इन समस्याओं के दूरगामी परिणाम को समझा और अनशन पर बैठ गये।

यह राष्टीय संकट था। इस समय राष्ट्रवादी बाबूजी ने गांधी जी का ख़ूब सहयोग किया। उन्होंनें दलितों के धर्म-परिवर्तन को रोका और उन्हें आजादी के आन्दोलन से जोड़ा।  

बाबू जगजीवन राम में राजनितिक कुशलता और दूरदर्शिता थी. इसके बाद बाबू जी दलितों के प्रिय नेता के रूप में प्रसिद्ध हो गये. इसके बाद गांधी जी के विश्वसनीय पात्र बने और राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गये.

बाबू जगजीवन राम के बारें में अन्य जानकारियाँ

  • 1936 में, बाबू जगजीवन राम को 28 वर्ष की आयु में उन्हें बिहार विधान परिषद का सदस्य चुना गया.
  • 1980 में जगजीवन राम ने कोलकत्ता के वेलिंगटन स्क्वायर में एक मजदूर रैली को सम्बोधित किया था जिसमें लगभग 50 हजार लोग आये हुए थे.
  • 1946 – भारत के प्रथम मन्त्रिमंडल में उन्हें श्रम मंत्री का पद मिला जिस पर वो 1946 से 1952 तक रहे.
  • 1952 से 1986 तक संसद सदस्य रहे.
  • 1956 से 1962 तक उन्होंने रेल मंत्री के पद पर कार्य किया.
  • 1967 से 1970 तक वह कृषि मंत्री रहकर किसानों के हित में फैसले लिये.
  • 1970 से 1971 तक जगजीवन राम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे.
  • 1970 से 1974 तक उन्होंने देश के रक्षामंत्री के पद की जिम्मेदारी को सम्भाला.
  • 1974 से 1977 तक वह कृषि मंत्री रहे. यह दूसरी बार कृषि मंत्री बने.
  • 23 मार्च, 1977 से 22 अगस्त, 1979 तक वह भारत के उप प्रधानमंत्री बनकर देश की सेवा की.
  • आपातकाल के दौरान वर्ष 1977 में वह कांग्रेस से अलग हो गए और ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी‘ नाम की पार्टी का गठन किया और जनता गठबंधन में शामिल हो गए। इसके बाद 1980 में उन्होंने कांग्रेस (जे) का गठन किया.

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Summary Babu Jagjivan Ram Biography

एक दलित के घर में जन्म लेकर राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर छा जाने वाले बाबू जगजीवन राम का जन्म बिहार की उस धरती पर हुआ था जिसकी भारतीय इतिहास और राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

उनका नाम जगजीवन राम रखे जाने के पीछे प्रख्यात संत रविदास के एक दोहे – प्रभु जी संगति शरण तिहारी, जगजीवन राम मुरारी, की प्रेरणा थी।

इसी दोहे से प्रेरणा लेकर उनके माता-पिता ने अपने पुत्र का नाम जगजीवन राम रखा था। उनके पिता शोभा राम एक किसान थे, जिन्होंने ब्रिटिश सेना में नौकरी भी की थी।

जगजीवन राम, जिन्हें बाबूजी के नाम से जाना जाता है, एक राष्ट्रीय नेता, एक स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक न्याय के योद्धा, दलित वर्गों के एक चैंपियन, एक महीन सांसद, एक सच्चे लोकतंत्रवादी, एक प्रतिष्ठित केंद्रीय मंत्री, एक सक्षम प्रशासक और एक असाधारण प्रतिभाशाली वक्ता थे।

उन्होंने अपने जीवन बहुत से ऐसे काम किए जो अब शायद ही कोई और कर पाएगा। जगजीवन राम दलित वर्गों के लिए सामाजिक समानता और समान अधिकारों के हिमायती थे। उन्होंने भारत में अछूत जैसी कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाई थी।

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Ashu Garg

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