Legal Rights of Married Women, हर शादीशुदा महिला को कुछ कानूनी अधिकार दिया गया है. इस कानूनी अधिकार की जानकारी हर शादीशुदा महिला के पास जरूर होना चाहिए.
यदि आप शादीशुदा हैं तो यह जानकारी आपके बहुत काम आएगी. इसके अलावा आज शादीशुदा नहीं है कल तो शादी जरूर कर लेगी तो शायद कल ही आपके काम आने वाला है.
शादी एक गहरी नींव है, जो समाज में लोगों और परिवार को आपस में बांध कर रखने का काम करती है. बहुत से लोग शादीशुदा जिंदगी को सफल तरीके से जीने में कामयाब हो जाते हैं, वहीं बहुत से लोगों के लिए यह एक खौफनाक और कठिन परिस्थिति बन जाती है.
शादी को सफल या खौफनाक बनाने में दोनों पक्ष का सहयोग होता है. यदि समझदारी से काम लिया जाये तो शादी का बंधन किसी वरदान से कम नहीं होता है.
कई बार ऐसा भी देखा गया है एक पक्ष अच्छा बर्ताव कर रहा हो तो भी दूसरा अच्छा बर्ताव नहीं करना चाहता है जिससे शादी के बंधन में दरार आ जाता है.
ऐसे कई मामले भी सामने आते हैं, जिनमें महिलाएं सालों तक अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों को सहती रहती हैं, क्योंकि उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होती है.
इसीलिए इस लेख में हमने इंडियन लीगल राइट्स जो महिलाओं को दिया गया है उसके बारें में बात किया है. इस लीगल अधिकार की जानकारी सभी महिलाओं को ह्होना चाहिए. इसीलिए इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ सझा करें.
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Table of Contents
पति के घर में रहने का अधिकार
पति के घर में रहने के अधिकार को मैट्रिमोनियल घर का अधिकार भी कहा जाता है. एक शादीशुदा महिला अपने पति के घर मतलब अपने ससुराल में रह सकती है इसका उसे पूरा अधिकार है.
कुछ परिस्थिति में ऐसा देखा गया है लोग अपने ससुराल छोड़ मायके आ जाते हैं. लेकिन कानूनी हक के बारे में बात करें तू चाहे परिस्थिति कैसी भी हो यहां तक कि पति की मृत्यु हो गई हो तो भी पत्नी अपने ससुराल में रह सकती है.
यदि पति पत्नी के बीच तालाब की बात चल रही हो या तलाक की बात कोर्ट में हो, इस परिस्थिति में भी पत्नी अपने पति के घर तब तक रह सकती है जब तक उसे रहने के लिए कोई दूसरी जगह नहीं मिल जाती है.
यदि तलाक प्रक्रिया के दौरान भी पत्नी आपने पति के घर में रहना चाहती है है तो तलाक हो जाने तक वह आपने पति के घर में रह सकती है. कहने का मतलब साफ है, पत्नी अपने पति के घर में जब तक चाहे रह सकती है यह उसका लीगल है.
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स्त्रीधन का अधिकार
Hindu Succession act 1956 में सेक्शन 14 और Hindu Marriage act 1955 में सेक्शन 27, के अंतर्गत एक महिला स्त्रीधन को अधिकारपूर्वक और मालिकाना हक के साथ मांग सकती है.
अगर उसके इस अधिकार का हनन होता है, तो ऐसी परिस्थिति में वह The protection of Women Against Domestic Violence Act में सेक्शन 19 A, के अंतर्गत शिकायत दर्ज करा सकती है.
अबॉर्शन का अधिकार
महिला के पास अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को गिराने का अधिकार होता है. यह उसके निजता का मामला है वह बच्चा रखना चाहती है तो रखेगी अन्यथा वह कोई भी कदम बिना किसी से पूछे, बिना किसी को बताये उठा सकती है.
इसके लिए उसे अपने ससुराल या अपने पति की सहमति की जरूरत नहीं है. The Medical Termination of Pregnancy Act, 1971, के अंतर्गत एक महिला अपनी प्रेगनेंसी को किसी भी समय खत्म कर सकती है, इसके लिए प्रेगनेंसी का 24 सप्ताह से कम का होना जरूरी है.
कुछ स्पेशल केस इसमें एक महिला अपने प्रेगनेंसी को 24 सप्ताह के बाद भी अबॉर्ड करा सकती है, इसके लिए इंडियन कोर्ट ने उसे अधिकार दिया है.
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बच्चे को रखने का अधिकार
एक महिला के पास इस बात का पूर्ण रूप अधिकार होता है कि वह अपने बच्चे को आपने पास रखने की मांग कर सकती है. खासतौर पर यदि बच्चा 5 साल से छोटा हो.
इसके साथ ही अगर वह अपना ससुराल छोड़ कर जा रही है, ऐसी परिस्थिति में भी वह बिना किसी कानूनी ऑर्डर के अपने बच्चे को अपने साथ ले जा सकती है.
इसके साथ ही एक समान अधिकार के तहत यदि घर में विवाद की स्थिति पैदा होती है, तो महिला अपने बच्चे को आपने पास रख सकती है.
तलाक का अधिकार
हिंदू मैरिज एक्ट सेक्शन 13, 1995, के अंतर्गत एक महिला अपने पति की सहमति के बिना भी उस स्थिति में तलाक लेने का अधिकार रखती है, जब उसके साथ पति ने बेवफाई की हो, या उस महिला के साथ निर्दयता या शारीरिक और मानसिक अत्याचार आदि किया हो.
इसके साथ ही महिला अपने पति से मेंटेनेंस चार्ज की मांग कर सकती है. ‘इंडियन पेनल कोड’ सेक्शन 125, के तहत एक पत्नी अपने और अपने बच्चे के लिए अपने पति से फाइनेंसियल जरूरतों को पूरा करने की मांग कर सकती है.
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संपत्ति का अधिकार
The Hindu Succession Act, 1956 में 2005 में हुए संशोधन, के बाद एक बेटी चाहे वह शादीशुदा हो या ना हो, अपने पिता की संपत्ति को पाने का बराबरी का हक रखती है.
इसके साथ ही महिला अपने पूर्व पति की संपत्ति पर अपना अधिकार जता सकती है. हालांकि, ये उस स्थिति में संभव है, जब उसके पति ने उसे अपनी संपत्ति से बेदखल करने संबंधित वसीयत न बनाई हो.
इसके साथ ही अगर किसी महिला का पति तलाक के बिना दूसरी शादी कर लेता है, तो उस परिस्थिति में पति की पूरी संपत्ति पर उसकी पहली पत्नी का अधिकार होता है.
घरेलू हिंसा के खिलाफ रिपोर्ट करने का अधिकार
कहा जाता है घर की चारदीवारी के अन्दर महिलाएं ज्यादा सुरक्षित हैं. लेकिन आज भी हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके वजह से महिलाएं घर के चारदीवारी के अन्दर अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं कर रही हैं.
घर के अन्दर महिलाओं के साथ हो रहे अपराध Domestic Violence (घरेलु हिंसा) के अंतर्गत आता है. Domestic violence Act 2005, के अंतर्गत एक महिला को यह अधिकार प्राप्त है, कि अगर उसके साथ उसका पति या उसके ससुराल वाले शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सैक्शुअल या आर्थिक रूप से अत्याचार यो शोषण करते हैं, तो वह उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकती है.
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दहेज और उत्पीड़न के खिलाफ रिपोर्ट करने का अधिकार
Dowry Prohibition Act 1961 के तहत, एक महिला को यह अधिकार प्राप्त है कि अगर उसका पैतृक परिवार या उसके ससुराल के लोगों के बीच किसी भी तरह के दहेज का लेन-देन होता है, तो वह इसकी शिकायत कर सकती है.
IPC के Section 304B और 498A, के तहत दहेज का आदान-प्रदान और इससे जुड़े उत्पीड़न को गैर-कानूनी व अपराधिक करार दिया गया है.
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सारांश
पृथ्वी पर जितने भी सजीव जगत की वस्तुए हैं, उनका इस पृथ्वी पर बराबर का अधिकार है. लेकिन, जब बात मनुष्य जाती की आती है तो जन्म लेने से पहले भी उसका कुछ अधिकार होता है साथ ही जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो कुछ मौलिक अधिकारों के साथ जन्म लेता है.
इसी तरह एक शादी शुदा महिला को भी कुछ अधिकार दिया गया है. जिसकी जानकारी ऊपर दिया गया है. एक शादी शुदा महिला का उसके पति और उसके संपत्ति पर पूरा अधिकार होता है.
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