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5 September || Teachers Day || शिक्षक दिवस
किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है। शिक्षा के अनेक आयाम हैं, जो राष्ट्रीय विकास में शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हैं। वास्तविक रूप में शिक्षा का आशय है ज्ञान, ज्ञान का आकांक्षी है – शिक्षार्थी और इसे उपलब्ध कराता है शिक्षक।
भारत भूमि पर अनेक विभूतियों ने अपने ज्ञान से हम सभी का मार्ग दर्शन किया है। उन्ही में से एक महान विभूति शिक्षाविद्, दार्शनिक, महानवक्ता एवं आस्थावान विचारक डॉ. सर्वपल्लवी राधाकृष्णन जी ने शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। उनकी मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाय़े तो समाज की अनेक बुराईयों को मिटाया जा सकता है। इन्ही महान विभूति के जन्म दिवस पर हम शिक्षक दिवस मानते हैं।
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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ज्ञान के सागर थे। उनकी हाजिर जवाबी का एक किस्सा आपसे share कर रहे है :—
एक बार एक प्रतिभोज के अवसर पर अंग्रेजों की तारीफ करते हुए एक अंग्रेज ने कहा – “ईश्वर हम अंग्रेजों को बहुत प्यार करता है। उसने हमारा निर्माण बड़े यत्न और स्नेह से किया है। इसी नाते हम सभी इतने गोरे और सुंदर हैं।“ उस सभा में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी भी उपस्थित थे। उन्हे ये बात अच्छी नहीं लगी अतः उन्होने उपस्थित मित्रों को संबोधित करते हुए एक मनगढंत किस्सा सुनाया —
“मित्रों, एक बार ईश्वर को रोटी बनाने का मन हुआ उन्होने जो पहली रोटी बनाई, वह जरा कम सिकी। परिणामस्वरूप अंग्रेजों का जन्म हुआ। दूसरी रोटी कच्ची न रह जाए, इस नाते भगवान ने उसे ज्यादा देर तक सेंका और वह जल गई। इससे निग्रो लोग पैदा हुए। मगर इस बार भगवान जरा चौकन्ने हो गये। वह ठीक से रोटी पकाने लगे। इस बार जो रोटी बनी वो न ज्यादा पकी थी न ज्यादा कच्ची। ठीक सिकी थी और परिणाम स्वरूप हम भारतीयों का जन्म हुआ।”
ये किस्सा सुनकर उस अंग्रेज का सिर शर्म से झुक गया और बाकी लोगों का हँसते हँसते बुरा हाल हो गया।
डॉ. राधाकृष्णन कहा करते थे :
“पुस्तकें वो साधन हैं जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं।”
महामहीम राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के महान विचारों को ध्यान में रखते हुए शिक्षक दिवस के पुनीत अवसर पर हम सब ये प्रण करें कि शिक्षा की ज्योति को ईमानदारी से अपने जीवन में आत्मसात करेंगे क्योंकि शिक्षा किसी में भेद नही करती, जो इसके महत्व को समझ जाता है वो अपने भविष्य को सुनहरा बना लेता है।
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समस्त शिक्षकों को हम निम्न शब्दों से नमन करते हैं —
ज्ञानी के मुख से झरे, सदा ज्ञान की बात।
हर एक पंखुड़ी फूल, खुशबू की सौगात।।
शिक्षा विकास की कुंजी है। विश्वास जैसे आवश्यक गुणों के जरिए लोगों को अनुप्रमाणित कर सकती है। विकसित एवं विकासशील दोनों वर्ग के देशों में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका समझी गई है। भारत में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर समय-समय पर बहस होती रही है।
इसे विडंबना ही कहें कि हम आज तक सर्व स्वीकार्य शिक्षा व्यवस्था कायम नहीं कर सके। उल्लेखनीय है कि तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद आज 19 वर्ष की आयु समूह में दुनिया की कुल निरक्षर आबादी का लगभग 50 प्रतिशत समूह भारत में है। कहा जाता है कि तरुणाई देश का भविष्य है।
राष्ट्र निर्माण में युवा पीढ़ी की अहम भूमिका है। इस संदर्भ में भारत की स्थिति अत्यधिक शर्मनाक और हास्यास्पद ही मानी जा सकती है। देश में लगातार हो रहे नैतिक एवं शैक्षणिक पतन से हमारे युवा वर्ग पर सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
देश के विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष बेरोजगार नौजवानों की फौज तैयार करते जा रहे हैं। किसी ने ठीक ही कहा है – “सत्ता की नाकामी राजनीतिक टूटन को जन्म देती है।” हमारी राजनीतिक पार्टियां, जातियों में विघटित हो रही हैं।
परिणामस्वरूप मानव समाज आत्म केंद्रित और स्वार्थ केंद्रित होता जा रहा है। आज देश की राजनीति में काम और योग्यता का मूल्यांकन न होकर धन, बल और बाहुबल का बोलबाला है। लोकतंत्र के गौरव और प्रतिष्ठा का प्रतीक हमारी संसद वैचारिक प्रवाह चिंतन मनन की जगह द्वेष, कलह, झूठी शान और दिखावे के स्वर उभरते नजर आते हैं।
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देश के कर्णधारों की कथनी-करनी के बीच बढ़ते अंतर ने मानव-मानव के बीच आस्था और विश्वास का संकेत खड़ा कर दिया है। व्यावसायिकता की आंच से मानवीय संवेदनाएं ध्वस्त हो रही हैं और हमारी कथित भाग्य विधाता शिक्षक समाज राष्ट्र में व्याप्त इस भयावह परिस्थिति को निरीह और असहाय प्राणी बनकर मूकदर्शक की भांति देखने को विवश हैं।
दुर्भाग्य से हमारे देश में समाज के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और आदर प्राप्त “शिक्षक” की हालत अत्यधिक दयनीय और जर्जर कर दी गई है।
शिक्षक शिक्षण छोड़कर अन्य समस्त गतिविधियों में संलग्न हैं। वह प्राथमिक स्तर का हो अथवा विश्वविद्यालयीन, उससे लोकसभा, विधानसभा सहित अन्य स्थानीय चुनाव, जनगणना, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री अथवा अन्य इस श्रेणी के नेताओं के आगमन पर सड़क किनारे बच्चों की प्रदर्शनी लगवाने के अतिरिक्त अन्य सरकारी कार्य संपन्न करवाए जाते हैं।
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देश की शिक्षा व्यवस्था एवं शिक्षकों की मौजूदा चिंतनीय दशा के लिए हमारी राष्ट्रीय और प्रादेशिक सरकारें सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं, जिसने शिक्षक समाज के अपने हितों की पूर्ति का साधन बना लिया है। शिक्षा वह है, जो जीवन की समस्याओं को हल करे, जिसमें ज्ञान और काम का योग है?
आज विद्यालय में विद्यार्थी अध्यापक से नहीं पढ़ते, बल्कि अध्यापक को पढ़ते हैं।
वर्षभर उपेक्षा और प्रताड़ना सहन करने वाले समाज के दीनहीन समझे जाने वाले आज के कर्मवीर, ज्ञानवीर पराक्रमी और स्वाभिमानी शिक्षकों को 5 सितंबर को राष्ट्रीय राजधानी सहित देशभर में सम्मान प्रदान कर सरकार शिक्षक दिवस की औपचारिकता पूरी करती है।
संभावना आज की असीमित एवं अपरिमित है। निष्क्रिय समाज सक्रिय दुर्जनों से खतरनाक है। किसी महापुरुष द्वारा व्यक्त यह कथन हमें भयावह परिदृश्य से उबारने की प्रेरणा दे सकता है।
लेख भेजने वाला – Ashish Raj aka******@gmail.com 77******94
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बहुत ही बढ़िया लेख आज टीचर्स डे के मौके पर जब मुझे कुछ समझ नहीं आया तो Gurujitips.In Open करते ही यह पहला पोस्ट था. इतने दिनों से तो मैं GurujiTips.In को फॉलो जरूर कर रही हूँ. लेकिन आज मुझे इससे बहुत हेल्प मिला. बहुत बहुत धन्यवाद गुरूजी! आब सभी बच्चों ने मिझे विश किया लेकिन मैं आपको विश करती हूँ. सही समय पर आपका साथ मिला गुरूजी. शिक्षक दिवस की शुभकामनाओं के साथ आपका चरण स्पर्श गुरूजी.